सकारात्मक दृष्टिंकोण!


रात्रि में एक वृद्ध व्यक्ति मिलने आए थे। उनका हृदय जीवन के प्रति शिकायतों ही शिकायतों से भर पड़ा था। मैंने उनसे कहा, ''जीवन-पथ पर कांटे हैं- यह सच है। लेकिन, वे केवल उन्हें ही दिखाई पड़ते हैं, जो कि फूलों को नहीं देख पाते। फूलों को देखना जिसे आता है, उसके लिए कांटे भी फूल बन जाते हैं।''
फरीदुद्दीन अत्तार अकसर लोगों से कहा करता था, ''ऐ खुदा के बंदों, जीवन की राह में अगर कभी कोई कड़वी बात हो जावे, तो उस प्यारे गुलाम को याद करना।'' लोग पूछते, कौन सा गुलाम? तो वह कहानी कहता, ''किसी राजा ने अपने एक गुलाम को एक अत्यंत दुर्लभ और सुंदर फल दिया था। गुलाम ने उसे चखा और कहा कि फल तो बहुत मीठा है। ऐसा फल न तो उसने कभी देखा ही था, न चखा ही। राजा का मन भी ललचाया उसने गुलाम से कहा कि टुकड़ा काट कर मुझे भी दो। लेकिन, गुलाम फल का एक टुकड़ा देने में भी संकोच कर रहा है, यह देख राजा का लालच और भी बढ़ा। अंतत: गुलाम को फल का टुकड़ा देना ही पड़ा। पर जब टुकड़ा राजा ने मुंह में रखा तो पाया कि फल तो बेहद कड़ुवा है। उसने विस्मय से गुलाम की ओर देखा! गुलाम ने उत्तर दिया- मेरे मालिक, आपसे मुझे कितने कीमती तोहफे मिलते रहे हैं। उनकी मिठास इस छोटे से फल की कड़ुवाहट को मिटा देने के लिए क्या काफी नहीं है? क्या इस छोटी सी बात के लिए मैं शिकायत करूं और दुखी होऊं? आपके मुझ पर इतने असंख्य उपकार किए हैं कि इस छोटी-सी कड़ुवाहट का विचार भी करना कृतघ्नता है।''
जीवन का स्वाद बहुत कुछ उसे हमारे देखने के ढंग पर निर्भर करता है। कोई चाहे तो दो अंधकार पूर्ण रातों के बीच एक छोटे-से दिन को देख सकता है। और, चाहे तो दो प्रकाशोज्ज्वल दिनों के बीच एक छोटी-सी रात्रि को। पहली दृष्टिं में वह छोटा-सा दिन भी अंधकार पूर्ण हो जाता है और दूसरी दृष्टिं में रात्रि भी रात्रि नहीं रह जाती है।
(सौजन्य से : ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन)

2 comments:

Udan Tashtari said...

आभार. जय हो!!

मीनाक्षी said...

बहुत सुन्दर बात कह गए आज...काश हम इसी नज़रिए से ज़िन्दगी को देख पाएँ...