कौन हो तुम!!!

अमावस उतर रही है। पक्षी नीड़ों पर लौट आये हैं और घिरते अंधेरे में वृक्षों पर रात्रि-विश्राम के पूर्व चहल-पहल है। नगर में दीप जलने लगे हैं। थोड़ी ही देर बाद आकाश में तारे और नीचे दीप ही दीप हो जाने को हैं।
पूर्वीय आकाश में दो छोटी काली बदलियां तैर रही हैं। कोई साथी नहीं है- एकदम अकेला हूं। कोई विचार नहीं, बस बैठा हूं। और कितना आनंदप्रद है। आकाश और आकाश-गंगा अपने में समा गयी मालूम होती है।
विचार नहीं होते हैं, तो व्यक्ति-सत्ता, विश्व-सत्ता से मिल जाती है। एक छोटा-सा परदा है, अन्यथा प्रत्येक प्रभु है। आंख पर तिनका है और तिनके ने प्रभु को छिपा लिया है। यह छोटा-सा ही तिनका संसार बन गया है। इस छोटे-से तिनके के हटते ही अनंत आनंद-राज्य के द्वार खुल जाते हैं।
जीसस क्राइस्ट ने कहा है, 'जरा-सा झांकों भर, द्वार खुले ही हैं।' एक व्यक्ति सूर्यास्त की दिशा में भागा जा रहा था। उसने किसी से पूछा, 'पूर्व कहां है?' उत्तर मिला, 'पीठ भर फेर लो, पूर्व तो आंख के सामने ही मिल जायेगा।' सब उपस्थित है। ठीक दिशा में आंख भर फेरने की आवश्यकता है।
यह बात सारे जगत में कह देनी है। इसे ठीक से सुन भी लेना, बहुत-कुछ पा लेना है। स्व-दिव्यता की आस्था आधी उपलब्धि है।
मैंने आज ही मिलने आये एक मित्र से कहा है : संपत्ति पास है, केवल स्मरण नहीं रहा है। सम्यक स्मृति जगाओ- अपनी दिव्यता को स्मरण करो- कौन हो तुम? अपने को पूछो- पूछो- और इतना पूछो कि समस्त मन-प्राण पर वह अकेला स्वर गूंजता रह जाये। फिर अचेतन में उसका तीर उतर जाता है और वह अलौकिक उत्तर अपने आप सामने आ खड़ा होता है, जिसे जान लेना, सब-कुछ जान लेना है।
(सौजन्य से : ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन)

3 comments:

Udan Tashtari said...

जय हो!!!

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आप हिन्दी में लिखते हैं. अच्छा लगता है. मेरी शुभकामनाऐं आपके साथ हैं इस निवेदन के साथ कि नये लोगों को जोड़ें, पुरानों को प्रोत्साहित करें-यही हिन्दी चिट्ठाजगत की सच्ची सेवा है.

एक नया हिन्दी चिट्ठा भी शुरु करवायें तो मुझ पर और अनेकों पर आपका अहसान कहलायेगा.

इन्तजार करता हूँ कि कौन सा शुरु करवाया. उसे एग्रीगेटर पर लाना मेरी जिम्मेदारी मान लें यदि वह सामाजिक एवं एग्रीगेटर के मापदण्ड पर खरा उतरता है.

यह वाली टिप्पणी भी एक अभियान है. इस टिप्पणी को आगे बढ़ा कर इस अभियान में शामिल हों. शुभकामनाऐं.

राकेश जैन-- said...

ओशो के विचार अब ब्लोग्स पर भी ---हिन्दी मे बहुत अच्हा लगा .ओशो को जहा कही भी पधता हु पधता ही चला जाता हु

शिवनागले दमुआ said...

ओशो जी को पढ़ कर बहुत आनंद मिलता है । उनके लिखने की शैली एकदम दिल को छू लेती है । निवेदन है कि ,इनकी पुस्तकें पीडीएफ़ फारमेट में फ्री डाउनलोडिंग हेतु हिन्दी में उपलब्ध हो तो जानकारी देकर अनुग्रहित करें ।

धन्यवाद